Wednesday, November 25, 2009

उलटी चल चलते है इश्क करने वाले
आँखे बंद करते हैं दीदार के लिए
किसी किसी पे किसी को एतबार हो जाता है
अजनबी कोई सख्स भी यार हो जाता है
खूबियों से ही नही होती मोहब्बत सदा
खामियों से भी अक्सर प्यार हो जाता है
आंचल में  सजा  लेना  कलियाँ ,
जुल्फों में सितारे भरलेना
ऐसे ही कभी जब शाम ढले ,
तब याद हमें भी करलेना
आया था यहाँ बेगाना सा
चल दूंगा कहीं दीवाना सा
दीवाने की खातिर तुम कोई
इलज़ाम न अपने सर लेना
रास्ता जो मिले अनजान कोई
आजाये अगर तूफ़ान कोई
अपने को अकेला जान के तुम ,
आखों में आसूं भरलेना ,
ऐसे ही कभी जब शाम ढले ,
तब याद हमें भी करलेना
....





मेरे दिल को सजा हो गयी है
जब से वो बेवफा हो गयी है

तन्हा--2 सा मौसम है सारा
सूनी-सूनी फिजा हो गयी है

उसके पहलू में रौशन दिए हैं
सुर्खी मुझको अदा हो गयी है

हाथ अपने उठाऊं ये मैं कैसे
हर दुआ बददुआ हो गयी है

जख्म की अब असीरी मिलेगी
दिल लगाना खता हो गयी है

मुस्कराहट

आपकी एक मुस्कराहट ने
हमारे होश उड़ा दिए
हम होश में आने ही वाले थे की
आप फिर से मुस्कुरा दिए |

Friday, November 20, 2009

दूरी हुयी तो उनसे करीब और हम हुए
ये कैसे फांसले थे जो बढ़ने से कम हुए
शायद गमे-जमाना तेरी जीत हो गयी
मुद्दत हुई इन आखों को बेवजह नम हुए
हर आहट में उसका एहसास नज़र आता है,
मर भी जाऊं तो उसका चेहरा नज़र आता है,

क्या करू दिल से ये बात अब जाती नहीं है,
उसकी हर बातों में छुपा राज़ नज़र आता है,

मैं मर कर भी जी रहा हूँ उसकी याद में,
ऑंखें बंद हें पर वो बेवफा याद आता है,

उसे भूलने की जितनी भी मैं कोशिश करूँ,
गिरते है अश्क जब उसका गले लगना याद आता है,

शमा मुझे जीने को अपनी सांसो का एक टुकडा दे दो,
मुझे हर मौत में बस तेरा ही चेहरा नज़र आता है..!
अब चलो किस्मत के हम साथ चलें
हथेलियों पर ले अरमानों की सौगात चलें
कहॉ कब छूट जाए साथ ना मालूम
ज़िदगी जैसी है ले बारात एहतियात चलें

फासले हैं मगर दोनों ने छुपाए हैं
चंद अफ़सानों को ले दरमियॉ करते बात चलें
ज़माने को बदलने की फुरसत कहॉ हमको
ज़ज्ब कर अंधेरों को ले संग कायनात चलें

क्या सच है क्या झूठा समझना मुश्किल
दिखे जो साफ उस आसमॉ को ले बॉट चलें
बड़ी बातों में ना पड़कर संभाले ज़िंदगी
जितना भी चलें ले हॉथों में हॉथ चलें.
कुछ खफा-खफा सा, आज यार है मेरा,
कोने मैं रोता हुआ खुदा, प्यार है मेरा।

इन हसरतों की अब, बातें न करो लोगो,
इन्ही की बदौलत दिल, बेजार है मेरा।

लाख बेदर्द सही पर, कोई बात नहीं,
जैसा भी है वो बस, दिलदार है मेरा।

इन लम्हों से भला यूँ, क्या शिकायत करनी,
वो क्या करें की बस, ये इंतज़ार है मेरा।

वो जफा भी करें, तो भी मंज़ूर मुझे,
मैं उल्फत में रहूँगा, इकरार है मेरा।

देख के उठा लेते हैं, वो ख़ंज़र लेकिन,
उनका दिल भी तो खुदा, गुनहगार है मेरा।
मेरा बस चले तो आपकी यादें खरीद लू ,
अपने जीने के वास्ते आपकी बातें खरीद लू !
कर सकें जो दीदार आपका ,
सब कुछ लुटा कर वो निगाहें खरीद लू....!!
पल ने कहा एक पल से ,
पल भर के लिए तुम मेरे हो जाओ ,
पर पल भर का साथ कुछ ऐसा हो
कि हर पल तुम ही तुम याद आओ
इन आते जाते हुए मौसमों से क्या लेना,
जो अपने पास नहीं दूसरो से क्या लेना.

वो साथ था तो पहन ओढ़ के निकलते थे,
वही नहीं है तो इन जेवरों से क्या लेना.

वो चाहता है मुझे भी मेरी ग़ज़ल की तरह,
नहीं तो उसको भला शायरों से क्या लेना.

वो जिसके वास्ते फिरते थे इश्तेहार बने,
बिचड के उससे हमें शोहरतों से क्या लेना.

वो जिसका नाम लिखा है हमारे चेहरे पर,
अब उसके नाम को अपने लबों से क्या लेना
सजा देने वाले राजा पूछते हैं
जीने की हमसे वजह पूछते हैं
देते हैं खुद ही ज़हर हम को
आका र फिर कितना हुवा है असर पूछते हैं

Thursday, November 19, 2009

मेरे जान-ओ-दिल औ इबादत हो तुम,
खुदा होके जुदा हुए जाते हो तुम।

भूल जाओगे तुम ऐसा सोचा ना था,
भूलने में बहुत याद आते हो तुम।

मेरी फरियाद भी, ज़रा तुम सुनो,
मुंह मोङे क्यूँ चले जाते हो तुम।

प्यार मेरा हकीकी है, सौदा नहीं,
यूंही बेगैरत कह के सताते हो तुम।

अपना जान कर मांग बैठा था मैं,
अजनबी की तरह पेश आते हो तुम।

मेरी आवाज ही दूंढ़ लेगी तुम्हे,
चले जाओ, कहाँ तक जाते हो तुम।

तन्हा पहले भी था, हूँ फिर से तन्हा बहुत,
मेरी तन्हाई में आते जाते हो तुम।
कोई भी लेके तो उनकी ख़बर नहीं आते
न जाने लौट के क्यों नामाबर नहीं आते
थके से पाँव से लिपटा है अपना साया ही
कहीं भी राह में अपनी, शज़र नहीं आते
ये दिल की बात है दिल से समझ में आती है
जिगर के ज़ख्म, नज़र से नज़र नहीं आते
सकूं दिया है, कोई ज़िन्दगी नहीं बख्शी
कि हम भी मरते नहीं, तुम अगर नहीं आते
तुम्हारे शहर में आया हूँ गाँव से तो मगर
यहाँ के रस्म-ओ-रिवाज-ओ-हुनर नहीं आते
नज़र लगे न कहीं, यूँ नज़र से छिपते हैं
बसे हुए हैं, नज़र में, नज़र नहीं आते
उन्हें भी शिकवा, हमें भी गिला, ये है 'शाहिद'
उधर को हम न गए, वो इधर नहीं आते
बेनाम सा ये दर्द, ठहर क्युं नही जाता..
जो बीत गया है, वो गुज़र क्युं नही जाता..

सब कुछ तो है, क्या ढूंढती हैं ये निगाहें..
क्या बात है, मैं वक्त पे घर क्युं नहीं जाता..

वो एक चेहरा तो नहीं सारे जहां मे..
जो दूर है वो दिल से उतर क्युं नही जाता..

देखता हूं मैं अपनी ही उलझी हुई, राहों का तमाशा..
जाते हैं सब जिधर, मैं उधर क्युं नहीं जाता..

वो नाम ना जाने कब से, ना चेहरा ना बदन है..
वो ख्वाब है अगर तो बिखर क्युं नहीं जाता..
अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं
जो सायर हैं वो महफ़िल में दरी-चादर उठाते हैं

तुम्हारे सहर में मय्यत को सब काँधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं

इन्हे फिरकापरस्ती मत सिखा देना की ये बच्चे
जमीं से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं

समंदर के सफ़र से वापसी का क्या भरोसा है
तो ऐ साहिल खुदा हाफिज की हम लंगर उठाते हैं

गजल हम तेरे आशिक हैं मगर इस पेट की खातिर
कलम किस पर उठाना था कलम किस पर उठाते हैं

बुरे चेहरों की जानिब देखने की हद भी होती है
संभालना आइनाखानों की हम पत्थर उठाते हैं
चलो फिर से मुस्कुराएं
चलो फिर से दिल जलाएं

जो गुज़र गयी हैं रातें
उन्हें फिर जगा के लाएं
जो बिसर गयी हैं बातें
उन्हें याद में बुलायें
चलो फिर से दिल लगायें
चलो फिर से मुस्कुराएं

किसी शह-नशीं पे झलकी
वो धनक किसी क़बा की
किसी रग में कसमसाई
वो कसक किसी अदा की
कोई हर्फे-बे-मुरव्वत
किसी कुंजे-लब से फूटा
वो छनक के शीशा-ए-दिल
तहे-बाम फिर से टूटा

ये मिलन की, नामिलन की
ये लगन की और जलन की
जो सही हैं वारदातें
जो गुज़र गयी हैं रातें
जो बिसर गयी हैं बातें
कोई इनकी धुन बनाएं
कोई इनका गीत गाएं
चलो फिर से मुस्कुराएं
चलो फिर से दिल लगाएं
वहीं पे जा कर उलझ रहा है, जहां से दामन छुड़ा रहे हैं!
चले थे जिस दर से बेखुदी में, उसी को फिर खट-खटा रहे हैं,

सिमट के चादर में सोने वाले, यूँ पाँव फैलाते जा रहे हैं!
बढ़ी ज़रा आमदन तो अपनी ज़रूरतों को बढ़ा रहे हैं!

तिरी ही बांती, दिया भी तेरा, तिरे ही दम से ये रौशनी है!
तिरी हिफ़ाज़त में ज़िन्दगी के चिराग़ सब झिलमिला रहे हैं!

ये किसकी ज़ुल्फ़ों से चुपके-चुपके निकल के शब मुस्कुरा रही है,
ये हार, ये बालियां हैं किसके,जो आसमाँ को सजा रहे हैं!

बढ़ा के रफ़्तार ज़िन्दगी की, न जाने क्या कर लिया है हासिल,
जुनूने-मन्ज़िल में किसलिये हम, सुकून-ए-हस्ती गवाँ रहे हैं!

वो लम्हे जो कल तलक मिरी ज़िन्दगी को बद्तर बना रहे थे,
ख्यालों में आज आ गये तो,लबों पे मुस्कान ला रहे हैं!

न महफिलें हैं, न सुनने वाले, न अब रही वो सुखन-नवाज़ी!
वो शेर ओ नग़्मे, ग़ज़ल, तराने, किताब में छट-पटा रहे हैं!
कलियों के होंट छूकर वो मुस्करा रहा है
झोंका हवा का देखो क्या गुल खिला रहा है.




पागल है सोच मेरी, पागल है मन भी मेरा
बेपर वो शोख़ियों में उड़ता ही जा रहा है.




अपनी नज़र से ख़ुद को देखूं तो मान भी लूं
आईना अक्स मुझको तेरा दिखा रहा है.

Friday, November 13, 2009

किसी ऎसी आरजू में जो कही सुनी न जाये
वहां उम्र काट आये जहाँ सांस ली न जाये

मैं तमाम ही तो ख्वाबों को लहू पिला चुका हूँ
मगर ऐ गमे-जमाना तेरी तिश्नगी न जाये

जो हयात ले के आयी वो तेरे लबों को पहुँची
मेरे लब पे तो वो आयी जो हँसी हँसी न जाये

वो नशा ही क्या जो तेरे किसी गम की राह रोके
वो शराब क्या जो मेरे ही लहू को पी न जाये

न हो आश का सहारा तो यार जिन्दगी है
वो सदा जो दी न जाये वो दुवा जो की न जाये
आसान नही चलना,निगेहबान बहुत है
मुश्किल है वही काम जो आसान बहुत है

जीना ही पड़ेगा यहाँ पीकर हमें आंसू
गुलशन नही है कोई बियाबान बहुत है

काँटों से डरेंगे तो जियेंगे यहाँ कैसे
हर मोड़ पे ही मौत का सामन बहुत है

फरिश्तों को कहा ढूँढ ते हो इस जहान में
इन्सान तो नही यहाँ शैतान बहुत है

मिस्रा दिया है तुमने बहुत सोच समझकर
मेरी कलम चली तेरा अहसान बहुत है
तुम भी जल थे
हम भी जल थे
इतने घुले-मिले थे
कि एक दूसरे से
जलते न थे।
न तुम खल थे
न हम खल थे
इतने खुले-खुले थे
कि एक दूसरे को
खलते न थे।
अचानक हम तुम्हें खलने लगे,
तो तुम हमसे जलने लगे।
तुम जल से भाप हो गए
और 'तुम' से 'आप' हो गए।
आँख से गिरा आंसू कोई उठा नहीं सकता,
किस्मत में लिखा कोई मिटा नहीं सकता.
दोस्तों में बसती है जान हमारी,
हमारी जान को हमसे कोई चुरा नहीं सकता.
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रहने दे आसमा ~ ज़मीन की तलाश कर,
सब कुछ यही है न कहीं और तलाश कर.
हर आरजू पूरी हो तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिए बस एक कमी की तलाश कर.
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दुनिया बदल जाये, तुम न बदलना,
मुस्किलो में हो जब भी , याद हमे कर लेना.
मांगे भी आपसे तो kya मांगे ??
देना कुछ चाहो तो बस मुस्कुरा देना

Nazar

तुम्हारी मस्त नज़र, अगर इधर नही होती
नशे में चूर फिजा इस कदर नही होती |
तुम्हीं को देखने की दिल में आरजू है
तुम्हारे आगे ही और ऊंची नज़र नही होती|
ख़फा न होना अगर बढ़के थाम लूँ दामन
ये दिल-फरेब खता जानकर नही होती|
तुम्हारे आने तलक हमको होश रहता है
फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नही होती|