Friday, November 13, 2009

किसी ऎसी आरजू में जो कही सुनी न जाये
वहां उम्र काट आये जहाँ सांस ली न जाये

मैं तमाम ही तो ख्वाबों को लहू पिला चुका हूँ
मगर ऐ गमे-जमाना तेरी तिश्नगी न जाये

जो हयात ले के आयी वो तेरे लबों को पहुँची
मेरे लब पे तो वो आयी जो हँसी हँसी न जाये

वो नशा ही क्या जो तेरे किसी गम की राह रोके
वो शराब क्या जो मेरे ही लहू को पी न जाये

न हो आश का सहारा तो यार जिन्दगी है
वो सदा जो दी न जाये वो दुवा जो की न जाये

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