Friday, November 20, 2009

इन आते जाते हुए मौसमों से क्या लेना,
जो अपने पास नहीं दूसरो से क्या लेना.

वो साथ था तो पहन ओढ़ के निकलते थे,
वही नहीं है तो इन जेवरों से क्या लेना.

वो चाहता है मुझे भी मेरी ग़ज़ल की तरह,
नहीं तो उसको भला शायरों से क्या लेना.

वो जिसके वास्ते फिरते थे इश्तेहार बने,
बिचड के उससे हमें शोहरतों से क्या लेना.

वो जिसका नाम लिखा है हमारे चेहरे पर,
अब उसके नाम को अपने लबों से क्या लेना

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