Thursday, November 19, 2009

अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं
जो सायर हैं वो महफ़िल में दरी-चादर उठाते हैं

तुम्हारे सहर में मय्यत को सब काँधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं

इन्हे फिरकापरस्ती मत सिखा देना की ये बच्चे
जमीं से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं

समंदर के सफ़र से वापसी का क्या भरोसा है
तो ऐ साहिल खुदा हाफिज की हम लंगर उठाते हैं

गजल हम तेरे आशिक हैं मगर इस पेट की खातिर
कलम किस पर उठाना था कलम किस पर उठाते हैं

बुरे चेहरों की जानिब देखने की हद भी होती है
संभालना आइनाखानों की हम पत्थर उठाते हैं

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