कोई भी लेके तो उनकी ख़बर नहीं आते
न जाने लौट के क्यों नामाबर नहीं आते
थके से पाँव से लिपटा है अपना साया ही
कहीं भी राह में अपनी, शज़र नहीं आते
ये दिल की बात है दिल से समझ में आती है
जिगर के ज़ख्म, नज़र से नज़र नहीं आते
सकूं दिया है, कोई ज़िन्दगी नहीं बख्शी
कि हम भी मरते नहीं, तुम अगर नहीं आते
तुम्हारे शहर में आया हूँ गाँव से तो मगर
यहाँ के रस्म-ओ-रिवाज-ओ-हुनर नहीं आते
नज़र लगे न कहीं, यूँ नज़र से छिपते हैं
बसे हुए हैं, नज़र में, नज़र नहीं आते
उन्हें भी शिकवा, हमें भी गिला, ये है 'शाहिद'
उधर को हम न गए, वो इधर नहीं आते
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment