Friday, November 20, 2009

अब चलो किस्मत के हम साथ चलें
हथेलियों पर ले अरमानों की सौगात चलें
कहॉ कब छूट जाए साथ ना मालूम
ज़िदगी जैसी है ले बारात एहतियात चलें

फासले हैं मगर दोनों ने छुपाए हैं
चंद अफ़सानों को ले दरमियॉ करते बात चलें
ज़माने को बदलने की फुरसत कहॉ हमको
ज़ज्ब कर अंधेरों को ले संग कायनात चलें

क्या सच है क्या झूठा समझना मुश्किल
दिखे जो साफ उस आसमॉ को ले बॉट चलें
बड़ी बातों में ना पड़कर संभाले ज़िंदगी
जितना भी चलें ले हॉथों में हॉथ चलें.

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